डायलिसिस पेशेंट के लिए डाइट चार्ट


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किडनी फेल्योर बेहद गंभीर और खतरनाक होता है। अगर इसका समय पर इलाज न किया जाए, तो उपचार असरकारक नहीं होता है। विकासशील देशों में उच्च लागत, संभावित समस्याओं और उपलब्धता की कमी की वजह से किडनी फेल्योर से पीडित सिर्फ 5 से 10 प्रतिशत मरीज ही डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट का उपचार करवा पाते हैं, लेकिन बाकी मरीज सिर्फ सामान्य उपचार पर निर्भर होते हैं। जिससे उन्हें अल्पावधि में ही विषमताओं का सामना करना पड़ता है। सी.के.डी. यानी क्रोनिक किडनी डिजीज, जो ठीक नहीं हो सकते हैं, उनके अंतिम स्टेज के उपचार जैसे डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट बेहत महंगे होते हैं। यह हर जगह उपलब्ध नहीं होते हैं और बहुत से लोगों का अपनी जान गवांनी पड़ती है, इसलिए आज हम किडनी फेल्योर मरीजों के दैनिक आहार के बारे में जानेंगे, जिसे अपनाकर वह अपनी किडनी को हेल्दी रख सकते हैं। 

·         नमक या सोडियम – डायलिसिस के समय वजन बढ़ने से आपके उपचार पर दुष्प्रभाव हो सकता है। आपको सलाह दी जाती है कि, आप कम नमक वाला खाना खाएं और अगर संभव हो तो सोडियम का सेवन न करें, जिससे आपका ब्लड प्रेशर कम रहेगा। नमक के बदले आप अन्य सीजनिंग जैसे हर्ब्स या मसालों का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन नमक के ऐसेस विकल्पों का इस्तेमाल न करें। जिसमें पोटेशियम कम हो।

·         प्रोटीन या मीट – डायलिसिस के रोगियों को रोजाना कम से कम 8-10 औंस प्रोटीन का सेवन करने की सलाह दी जाती है। प्रोटीन युक्त भोजन जैसे कि, फिश, रेड मीट, और अंडे का सेवन नियमित तौर पर किया जा सकता है, लेकिन इसकी मात्रा को नियंत्रित रखन चाहिए। अधिक मात्रा में प्रोटीन का सेवन करने से अन्य प्रभाव हो सकते हैं। आप छोटे आकार की फिश या आधा चिकन ब्रेस्ट खा सकते हैं।

·         फल या जूस – कुछ ऐसे फल जिसमें अधिक मात्रा में पोटेशियम हो जैसे कीवी, नेक्टरिन, प्रूनस, बनाना और खरबूजे न खाएं। साथ ही आप इसके बजाए सेब, बेरीज, चेरीज, अंगूर, प्लम या अनानास खाएं। डॉक्टर की सलाह अनुसार ही इसका सेवन करें।

·         पेय पदार्थ – डायलिसिस के समय हाई ड्रिंक्स का सेवन बिल्कुल न करें। इसे आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है जो आपको जीवन के लिए प्राणघातक हो सकता है। साथ ही इसके बजाए आप सेब का सिरका, अंगूर का जूस या लेमोनेड का सेवन करें।

·         नट्स और सीड्स – इन खाद्य पदार्थों में बेहद अधिक मात्रा में पोटेशियम और फास्फोरस पाया जाता है। लेकिन आपको सलाह दी जाती है कि, डायलिसिस के उपचार के समय आप पीनट बटर, सूखे मटर, बीन्स, आदि का सेवन न करें। साथ ही डायलिसिस बेहद ही दर्दभरी प्रक्रिया है और डॉक्टर आपको रोजाना पानी पीने की मात्रा को भी सीमित कर देते हैं, तो इस तरह की स्थिति में आने से पहले अच्छा होगा कि आप जल्दी से जल्दी अपने स्वास्थ्य की देखभाल अच्छे से करें।   

·         मिठाईयां - डायबिटीज के मरीज, जो डायलिसिस से गुजर रहे हैं। वह भारी डिजर्ट नहीं खाने चाहिए। लेकिन वह अब बाजार में आसानी से उपलब्ध शुगर फ्री मिठाईयां खा सकते हैं। 

·         अनाज – ब्लड शुगर कार्बोहाइड्रेट की वजह से शरीर में ब्लड शुगर लेवल की तरह बढ़ता है। डायबिटीज पेशेंट को दिन में 6-10 बार अनाज, सीरियल्स या ब्रेड खाने की आवश्यकता होती है। लेकिन साबुत अनाज या हाई फाइबर युक्त आहार जैसे गेंहू से बना ब्रेड, ब्रान सीरियल और ब्राउ सीरियल और ब्राउन राईस न खाएं, क्योंकि इनमें बेहद अधिक मात्रा में फास्फोरस होता है। इस खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण करके आप अपनी हड्डियों और रक्त वाहिकाओं का ध्यान रख सकते हैं।

·         सब्जियां या सलाद – सभी सब्जियों में कुछ मात्रा में पोटेशियम रहता है, लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि, आप कितनी मात्रा में सेवन करते हैं। डायलिसिस के समय कम पोटेशियम वाली सब्जियों का दिन में दो या तीन बार सेवन करना बेहद आवश्यक होता है। लेकिन हरे पत्तेदार सब्जियां जैसे ब्रोकोली, खीरा, लेट्युस आदि का सेवन करें। जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियों जैसे आलू, गाजर, चुकंदर का सेवन न करें।

·         डेयरी प्रोडक्ट – डेयरी प्रोडक्ट जैसे कि, दूध, दही या चीज का सेवन सीमित मात्रा में करें। लेकिन इन चीजों की आवश्यकता डायबिटीज के मरीजों को होती है। इनकी सीमित मात्रा जैसे आधा कप दूध या दही या एक औंस चीज का सेवन करें। स्किम मिल्क, लो-फैट मिल्क आदि का सेवन बिल्कुल न करें, क्योंकि इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में होता है जो डायलिसिस के रोगियों के लिए अच्छा नहीं होता है।  

किडनी डिजीज के मरीजों के लिए आहार -

किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों को सही आहार लेने की सलाह दी जाती है जैसे –
·         पानी और तरल पदार्थ की मात्रा को निर्देशानुसार लें।
·         किडनी रोग के लिए आहार योजना में सोडियम पोटेशियम और फास्फोरस की मात्रा कम होनी चाहिए।
·         प्रोटीन की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए। 0.8 से 1.0 ग्राम / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन प्रतिदिन लेने की सलाह दी जाती है।
·         जो मरीज पहले ही डायलिसिस पर हैं, उन्हें प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता होती है। (1.01.2 gm/kg body wt/day) इस प्रतिक्रिया के दौरान जो प्रोटीन का नुकसानदेह हो सकता है, उसकी भरपाई करने के लिए यह आवश्यक आहार है।
·         कार्बोहाइड्रेट पूरी मात्रा में (35-40 कैलोरी / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रतिदिन) सेवन करने की सलाह दी जाती है। घी, तेल, मक्खन और चर्बी वाले आहार कम मात्रा में लेने की सलाह भी दी जाती है।
·         विटामिन्स की आपूर्ति अच्छे से करें और पर्याप्त मात्रा में आवश्यक तत्वों का सेवन करें। इसके अलावा उच्च मात्रा में फाइबर आहार लेने की सलाह भी दी जाती है।
इन सभी आहार का सेवन करने से पहले अपनी किडनी जांच जरूर करवाएं और अगर किडनी की बीमारी हो, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार इसका सेवन करें।

किडनी स्वस्थ रखने के तरीके –

·         फिट रखें - नियमित रूप से एरोबिक व्यायाम और दैनिक शारीरिक गतिविधियां, ब्लड प्रेशर सामान्य रखने में और रक्त शर्करा को नियंत्रण करने में मदद करती है। इस तरह से शारीरिक गतिविधियां, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के खतरे को कम कर देती है और इसी प्रकार सी.के.डी. के जोखिम को कम किया जा सकता है।

·         संतुलित आहार - ताजे फल और सब्जियां युक्त आहार लें। आहार में परिष्कृत खाघ पदार्थ, चीनी, फेट और मांस का सेवन घटाना चाहिए। वह लोग जिनकी उम्र 40 के ऊपर है, भोजन में कम नमक लें, जिससे हाई ब्लड प्रेशर और किडनी स्टोन के रोकथाम में मदद मिले।

·         वजन को नियंत्रण में रखें - हेल्दी भोजन और नियमित व्यायाम के साथ अपने वजन का संतुलन बनाए रखें। यह डायबिटीज, दिल का रोग और सी.के.डी. के साथ जुड़ी अन्य बीमारियों को रोकने में मदद करता है।

·         धूम्रपान न करें - धूम्रपान करने से एथीरोस्क्लेरोसिस होने की संभावना हो सकती है। यह किडनी में खून प्रवाह को कम कर देते हैं, जिससे किडनी के कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। रिसर्च के मुताबिक, धूम्रपान की वजह से उन लोगों में जिनके अंतर्निहित किडनी डिजीज है या होने वाली है, उनके किडनी की कार्यक्षमता में गिरावट तेजी से आती है।

·         ओ.टी.सी (ओवर द काउंटर) दवाईयों का सेवन - लंबे समय तक दर्द निवारक दवाई लेने से किडनी को नुकसान होने का भी रहता है। रोज ली जाने वाली दवाईयां जैसे आईब्यूप्रोफेन, डायक्लोफेनिक, नेपरोसिन आदि किडनी को क्षति पंहुचाती है, जिससे अंत में किडनी फेल्योर हो सकता है। आप अपने दर्द को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें और अपनी किडनी को किसी भी प्रकार से खतरे में न डालें।

·         पानी अधिक पिएं - रोज 3 लीटर से अधिक 10-12 गिलास पानी पिएं। पर्याप्त पानी पीने से यूरिन पतला आता है और शरीर से कभी विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों को निकालने और किडनी स्टोन को बनने से रोकने में सहायता मिलती है।

किडनी फेल्योर का करें आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करके दवा बनाई जाती है, जिसमें किडनी रोगियों का इलाज किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं में वरूण, कासनी, गोखरू, पुनर्नवा और शिरीष जैसी जड़ी-बूटियां शामिल हैं जो रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं। किडनी की सभी बीमारियों के लिए आयुर्वेदिक उपचार सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हुई है। आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति के संपूर्ण, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास किया है। आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त करने के लिए वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करती है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है।
दिल्ली के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक उपचार केंद्र में से एक है कर्मा आयुर्वेदा अस्पताल। यह अस्पताल सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका संचालन डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं। यहां आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से किडनी के मरीजों का इलाज किया जाता है। डॉ. पुनीत धवन ने आयुर्वेद की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके, उन्हें रोग से मुक्त किया है वो भी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। कर्मा आयुर्वेदा में आयुर्वेदिक उपचार के साथ आहार चार्ट और योग करने की सलाह दी जाती है जिससे रोगी जल्द स्वस्थ हो सकें। 
प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है। आयुर्वेद किडनी की समस्या जिसका लक्ष्य प्राकृतिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्वों में उचिक इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण सामाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है, बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्वों के अनुरूप एक जीवनशैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हल्की पक्की सब्जियां विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती है। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों और गरीब देशों के लिए विशेष रूप से वरदान है।

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