कुल्फा एक जंगली
पौधा है, इसे आप जंगली घास भी कह सकते है। यह सभी जगह बड़ी आसानी से मिल जाती है अब
चाहे आप शहर में की गावं में रहने वाले हो या फिर शहर के निवासी हो यह आपको आपके
घर के पास आसानी से मिल जाता है। कुल्फा का पौधा अपने आप खुले मैदानों में, सड़क,
नदी, नाहर आदि के किनारे अपने आप उग जाता है। कहीं भी उग जाता है। यह एक ऐसा जंगली
पौधा है जिसे खाने में इस्तेमाल किया जाता है। कुल्फा का साग बना कर इसे बड़े चाव
से खाया जाता है, देश के कई हिस्सों में यह बाज़ार में भी आसानी से मिलता है। इसके
गुणों को देखते हुए इसे विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) ने इसे औषधीय पौधों की सूचि में शमिल किया है।
कुल्फा की पहचान :-
कुल्फा का पौधा भारत
में हर जगह आसानी से मिल जाता है। लेकिन यह सबसे ज्यादा उत्तर भारत के मैदानी और
पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से मिलता है। इसे पहचानना बहुत ही आसन है। इसकी
पत्तियां आकर में छोटी होने साथ मोटी होती है और अंडाकार होती है। इस पौधे की
लम्बाई लगभग 10-15 सेमी तक हो जाती है। इसकी पत्तियां और टहनियां (डंठल) काफी
रसीली और लसलसी होती है। इसकी पत्तियां खाने में हल्की खट्टी और हल्की नमकीन होती
है। इसमें पानी की अच्छी खासी मात्रा होती है। इसमें पीले रंग के अभूत छोटे
खुशबूदार फुल आते है। देश भर में इसे कई नामों से जाना जाता है। कुल्फा के अलावा
इसका सबसे प्रचलित नाम लौणी है। इसके अवाला इसे खुराफा, बड़गुनी, कुरफा, गोलचीवागी,
बरालोनिया, पुस्सले, लुकान, घोल, और शाक आदि के नाम से जाना जाता है।
कुल्फा पोषक तत्व और प्रयोग:-
कुल्फा का पौधा
हमारे लिए बहुत ही लाभकारी है। इसके अंदर बहुत से पोषक तत्व मौजूद है जो हमें कई
रोगों से बचाते है। कुल्फा के अंदर फैटी एसिड, विटामिन ऐ, विटामिन बी, विटामिन सी,
और विटामिन इ भी मौजूद है। इसके अलावा इसमें प्रचुर मात्र में ओमेगा-3, कैल्शियम,
आयरन, लिथियम, फाइबर, मैगनीज, कॉपर, के साथ साथ इसमें बहुत से एंटीओक्सिडेंट तत्व भी पाएं जाते है। अपने
गुणों के कारण यह एक आयुर्वेदिक औषधि में शामिल है।
अपने इन्हीं गुणों
और अपने खट्टे स्वाद के कारण यह खाने में इस्तेमाल किया जाता है। यदि आप रोजाना
इसकी दो से तिन पत्तियां रोज खाते है तो निश्चिन्त ही आपको अपने शरीर में कई बड़े
बदलाव देखने में मिलेंगे। कुल्फा के पौधे का सबसे ज्यादा प्रयोग साग बनाने में
किया जाता है। इसे चने और कुछ अन्य दलों से साथ और कुछ आम सब्जियों के साथ भी मिला
कर बनाया जाता है। कुछ हिस्सों में इसे मांसाहारी व्यंजनों में भी इस्तेमाल किया
जाता है। मछली पकाते समय इसका खास प्रयोग किया जाता है। कुछ आदिवासी और गावं देहात
में इसकी चटनी बना कर भी खाई जाती है जो शरीर को ठंडक प्रदान करने में मदद करती है।
कुल्फा से रोगों से बचाव :-
जैसा की आप ऊपर लिखे
लेख में कुल्फा के बरते में विस्तार से पढ़ ही चुके है की यह किडने पोषक तत्वों से
परिपूर्ण है। कुल्फा अपने इन्हीं गुणों के कर्रण हमें कई जानलेवा रोगों से बचाता
है। कुल्फा हमें विशेषकर किडनी से जुड़ें रोगों से बचाता है। यह हमारी किडनी को
ख़राब होने से बचाता है। दरअसल कुल्फा के सेवन से हमे कुछ ऐसे रोगों से बचाता है
जिनसे हमारी किडनी ख़राब होने का खतरा रहता है। तो आइये जानते है की कैसे कुल्फा
हमारी किडनी को स्वस्थ रखता है –
हृदय –
कुल्फा की मदद से आप अपने हृदय को स्वस्थ रख सकते है। यह आपको विशेषकर हार्ट
अटैक के खतरे से बचा कर रखता है। यदि आप रोजाना इसकी कुछ पत्तियों का रस पीते है
या फिर इसे ऐसे ही सलाद के रूप में खाते है तो आपका ख़राब कोलेस्ट्रोल कम होने
लगेगा। इसके साथ आपके रक्त में बनने वाले क्लोटिंग की समस्या भी दूर हो जायगी।
उच्च रक्तचाप –
यदि आपका रक्तचाप हमेशा बाधा रहता है तो आपको रोजाना सुबह कुल्फा की कुछ
पत्तियों या टहनियों को चबा कर खाना चाहिए। आप इसकी इसे सब्जी और सलाद के रूप में
भी ले सकते है। ऐसा करने से आपकी रक्त धमनियां सुचारू रूप से काम करने लगेगी और
देखते ही देखते आपका रक्तचाप सामान्य हो जायगा।
वजन –
यदि आपका वजन लगातार बढ़ता जा रहा है और काबू में नहीं आ रहा तो आप कुल्फा के
काले बीजों का सेवन करे। ऐसा करने से आपका बाधा हुआ वजन तेज़ी से कम होने लगेगा। इसके
लिए आप कुल्फा के 10 – 15 काले बीजों को गुनगुने पानी के साथ लें। इसके बाद आप
हल्का फुल्का वर्कआउट भी जरुर करे देखते ही देखते आपका वजन कम होने लगेगा। आपको
बता दें की मोटापा कई बिमारियों का घर होता है। एक बार कोई व्यक्ति मोटा हो जाए तो
उसके शरीर में कई प्रकार की बीमारियाँ हो जाती है।
मूत्र विकार –
यदि आप किसी भी प्रकार के मूत्र विकार से जूझ रहे है तो आप कुल्फा के पत्तों
से बने जूस का सेवन दिन में एक बार जरुर करे। इस जुस में आप हल्का सेंध नमक मिला
सकते है। कुछ ही दिनों में आप मूत्र विकार से मुक्ति पा लेंगे। अगर आप इस रोग से
जुडी किसी प्रकार की दवा लें रहे है तो दवा और जूस के सेवन में कम से कम दो घंटे
का अन्तराल रखे।
रक्त विकार –
अगर आपके शरीर में रक्त की कमी है तो आपको कुल्फा का सेवन करना शुरू कर देना
चाहिए। यह शरीर में रक्त बढाने में मददगार होता है। इसके साथ यह रक्त्शोधन में भी
कार्य कारगर है। यह आपके रक्त को साफ़ कर आपको त्वचा से जुड़ें रोगों से भी बचाता है
और आपका हेमोग्लोबिन भी बढ़ता है। कुल मिलकर यह हर किस्म के रक्त विकार से आपकी
रक्षा करता है। बता दें की हमारी किडनी रक्तशोधन का सबसे जरुरी काम करती है। लेकिन
किडनी ख़राब होने के कारण यह अपना कार्य नहीं कर पाती। जिसके बाद रोगी को डायलिसिस
का सहारा लेना पड़ता है।
हड्डियाँ –
कुलफा के अंदर काफी मात्रा में कैल्शियम मिलता है। कैल्शियम हड्डियों को मजबूत
करने में काफी मददगार है। यदि किडनी ख़राब होने या फिर किसी अन्य किसी कारण से आपकी
हड्डियाँ कमजोर हो चली है तो आपको कुल्फा का किसी भी रूप में सेवन करना शुरू कर
देना चाहिए। इसमें ना सिर्फ कैल्शियम बल्कि कुछ और भी कई प्रकार के पोषक तत्व
मौजूद है जो हड्डियों को मजबूत रखने में मदद करते है।
कुल्फा से सावधानियां :-
कुल्फा का पौधा भले ही हमारे लिए कितना ही उपयोगी हो लेकिन इसके कुछ
दुर्प्रभाव भी देखने में आते है। जिसके प्रति हमे सचेत रहना चाहिए। तो आइये जानते
है कुल्फा से होने वाले नुकसानों के बारे में –
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यदि आप गुर्दे की
पथरी के मरीज है तो आपको इसका सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसमें आयरन की
मात्रा अधिक होती है। लेकिन यह किडनी फेल्योर के रोगियों के लिए उपयोगी है।
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गर्भवती महिलों
को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
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किसी प्रकार की सर्जरी
और गर्भपात के दौरांन इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
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इसकी अधिक मात्रा
नुकसान देह होती है।
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छोटे बच्चों को
इसका सेवन ना कराएं। क्योंकि बच्चे इसे पचाने में ज्यादा सक्षम नही होते।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा
किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-
आयुर्वेद की मदद से हम प्रकार के रोग से आसानी से छुटकारा पा सकता है।
आयुर्वेद न सिर्फ हमें रोगों से बचाता है बल्कि हमें जीने का एक स्वस्थ तरीका भी
सिखाता है। आयुर्वेद हमे तमाम रोगो से जीवन भर के लिए मुक्त करता है। वहीँ
अंग्रेजी दवाओं की मदद से आप सिर्फ रोगों से कुछ समय भर के लिए निदान ही प्राप्त
कर पाते है। अंग्रेजी उपचार रोगो को जद से ख़त्म करने में सक्षम नही होता।
आयुर्वेद की मदद से
किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी से आसानी से छुटकारा पा सकते है वो भी बिना
डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण किए। ‘कर्मा आयुर्वेदा’ किडनी फेल्योर की जानलेवा
बीमारी का सफल उपचार आयुर्वेद की मदद कर रहा है। कर्मा आयुर्वेद कई दशकों से किडनी
फेल्योर के मरीजो को रोगमुक्त कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा की
गयी थी। तभी से यह किडनी के रोगियों को केवल आयुर्वेद की मदद से रोगमुक्त कर रहा
है।
इस समय कर्मा
आयुर्वेदा की बागड़ोर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे है। यह धवन परिवार की पांचवी पीढ़ी है
जो कर्मा आयुर्वेद का नेतृत्व कर रही है। डॉ. पुनीत धवन ने ना केवल भारत बल्कि
विश्व भर में किडनी फेल्योर के रोगियों का आयुर्वेदिक तरीके से उपचार उन्हें इस
जानलेवा बीमारी से निदान दिलाया है । डॉ. पुनीत धवन एक जाने माने आयुर्वेदिक
चिकित्सक है। इन्होने अब तक 35 हज़ार से भी ज्यादा लोगो की ख़राब किडनी को ठीक किया
है। आपको बता दें की कर्मा आयुर्वेद में बिना डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण के
बिना ही रोगी की किडनी ठीक की जाती है।
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