किडनी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। किडनी की खराबी किसी भी गंभीर बीमारी या मौत का कारण बन सकती है। वैसे आप इसकी तुलना एक सुपर कंप्यूटर के साथ कर सकते हैं, क्योंकि किडनी की रचना बेहद अटपटी है और उसके कार्य भी अत्यंत जटिल है उनके प्रमुख कार्य है- हानिकारक विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालती है और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों (सोडियम और पोटेशियम आदि) का नियमन करती है। इसमें थोड़ी सी भी खराबी आने पर व्यक्ति की जान पर बात आ जाती है, इसलिए किडनी को स्वस्थ रखना बेहद महत्वपूर्ण है। किडनी में खराबी आने के कारण लोगों की इन बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि किडनी फेल्योर। किडनी फिल्टर करने, अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखने वाली क्षमता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही इसके कार्य में खराबी आने पर किडनी फेल्योर का खतरा हो सकता है। रक्त में क्रिएटिनिन और रक्त यूरिया नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि का तात्पर्य किडनी की खराबी से होता है।
किडनी रोगियों
के लिए सेहतमंद सब्जियां -
किडनी शरीर के अधिक पानी, नमक
और क्षार को पेशाब द्वारा दूर करके शरीर में इन पदार्थों का संतुलन बनाने का
महत्वपूर्ण कार्य करती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में पानी,
नमक, पोटेशियम युक्त आहार और खाद्य पदार्थ
आदि अधिक मात्रा में लेने पर भी कई बार गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। किडनी
फेल्योर के केस में किडनी सही से काम नहीं कर पाती, जिससे
किडनी पर काफी बोझ पड़ता है। जिसके लिए शरीर में पानी, नमक
और क्षारयुक्त पदार्थ की उचित मात्रा बनाए रखने के लिए आहार में जरूरी परिवर्तन
करना आवश्यक है। किडनी फेल्योर के सफल उपचार में आहार के इस महत्व को ध्यान में
रखना चाहिए। इन मरीजों को कुछ इस प्रकार के आहार का सेवन करना चाहिए जैसे –
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लौकी - एक
माध्यम आकार की लौकी में कम से कम 96 प्रतिशत पानी मौजूद होता है,
जो किडनी के लिए फायदेमंद आहार मानी जाती है। लौकी में कई पोषत तत्व
मौजूद होने की वजह से, इंसुलिन के बनने में मदद मिलती है।
लौकी के सेवन से रक्त में मौजूद शर्करा को कम किया जा सकता है और इसके जूस को पीने
से यूरिन इंफेक्सन के खतरे को भी कम कर सकते हैं।
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तुरई -
तुरई की बेल को ठंडे पानी या गाय के दूध में घिसकर, लगातार
तीन दिन तक रोज सुबह खाली पेट पीने से आपकी स्टोन गलकर अपने आप यूरिन के माध्यम से
बाहर निकल जाएगी। तुरई में कई पोष्टिक तत्व मौजूद होते हैं जैसे कि –
विटामिन ए, प्रोटीन,
अधिक मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट,
पोटेशियम, फोलेट
आदि।
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पत्ता गोभी –
पत्ता गोभी में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे विटामिन सी, विटामिन के और विटामिन
बी। इसमें इंडोल्स जैसे सूजनरोधी घटक होते हैं और यह फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है।
इसी के साथ मसली हुई पत्ता गोभी को आप आलू की जगह पर भी खा सकते हैं, क्योंकि
इसमें पोटेशियम कम मात्रा में होता है। आप इसकी सब्जी बनाकर या सलाद के रूप में भी
खा सकते हैं।
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टिंडा -
टिंडा हमारे शरीर में मौजूद अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने में मदद करता है।
रोज टिंडे का सेवन करना फायदेमंद रहेगा। टिंडे में पानी की मात्रा अधिक होने की
वडह से यह पेशाब को बनाने में मदद करता है और किडनी के कार्य को करने में मदद करता
है।
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सब्जियों के रस का सेवन -
किडनी की समस्या से जूझ रहे रोगी अपने आहार में गाजर, खीरा,
पत्तागोभी तथा लौकी के रस को शामिल कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको
किडनी की समस्या से राहत मिल सकती है। इन सब्जियों के जूस के सेवन से आपकी किडनी
स्वस्थ रहती है इन जूस का सेवन करना आपके के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता
है।
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लहसून -
लहसून में पाएं जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट किडनी और हार्ट प्रॉब्लम की संभावना को कम
करता है। दिन में एक या दो कच्चा लहसून की कलियों का सेवन करने से शरीर हाई
कोलेस्ट्रॉल कम होता है।
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लाल शिमला मिर्च -
लाल शिमला मिर्च खाने से किडनी पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसमें विटामिन ए,
बी-6 और सी, फोलिक
एसिड और फाइबर से भरपूर होता है।
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गोभी -
गोभी में फाइटोकेमिकल्स (phytochemical) और
एंटीऑक्सीडेंट्स (Antioxidants) भरपूर मात्रा में पाया जाता है,
जो किचत फ्री रेडिकल्स के कारण होने वाले नुकसान को रोकता है। इसमें
पोटेशियम कम होने की वजह से यह डायलिसिस के मरीज के लिए फायदेमंद है। गोभी को
कच्चा या पका कर भी खा सकते हैं।
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हरी मटर – हरी मटर में प्रचुर
मात्रा में फाइबर होते हैं और पोटेशियम कम होता है। यह शरीर में ब्लड
शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और डायबिटीज को रोकते हैं। हरी
मटर के सेवन से किडनी ठीक तरह से काम करती है।
इन आहार का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें और तब इस
आहार का सेवन करें।
किडनी फेल्योर मरीजों के लिए आहार -
किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों को सही आहार लेने की सलाह दी जाती
है जैसे –
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पानी और तरल पदार्थ की मात्रा को
निर्देशानुसार लें।
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किडनी रोग के लिए आहार योजना में
सोडियम पोटेशियम और फास्फोरस की मात्रा कम होनी चाहिए।
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प्रोटीन की मात्रा अधिक नहीं होनी
चाहिए। 0.8 से 1.0 ग्राम / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रोटीन प्रतिदिन लेने
की सलाह दी जाती है।
·
जो मरीज पहले ही डायलिसिस पर हैं, उन्हें प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि
की आवश्यकता होती है। (1.0 – 1.2 gm/kg body wt/day) इस
प्रतिक्रिया के दौरान जो प्रोटीन का नुकसानदेह हो सकता है, उसकी भरपाई करने के लिए यह आवश्यक आहार है।
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कार्बोहाइड्रेट पूरी मात्रा में (35-40
कैलोरी / किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर प्रतिदिन) सेवन करने की सलाह दी जाती है।
घी, तेल, मक्खन और चर्बी वाले आहार कम मात्रा
में लेने की सलाह भी दी जाती है।
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विटामिन्स की आपूर्ति अच्छे से करें और
पर्याप्त मात्रा में आवश्यक तत्वों का सेवन करें। इसके अलावा उच्च मात्रा में
फाइबर आहार लेने की सलाह भी दी जाती है।
किडनी की गंभीर बीमारी -
किडनी की बीमारी के कई शारीरिक लक्षण हैं, लेकिन कभी-कभी लोग उन्हें अन्य स्थितियों के लिए जिम्मेदार मानते
हैं। किडनी की बीमारी वाले लोग कई स्टेजों के बाद लक्षणों का अनुभव करते हैं। जब
किडनी खराब होने लगती है या यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन बनने लगता है। तब
यह क्रोनिक किडनी डिजीज के कारण महज कुछ ही लोगों को पता चल पाता है। यह सुनिश्चित
करने के लिए, आपको
किडनी की बीमारी है या नहीं। यह जानने का एकमात्र तरीका है संकेत, जो किडनी की बीमारी की ओर इशारा करती
है। अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, किडनी फेल्योर का पारिवारिक इतिहास रहा
है या 60 वर्ष से अधिक आयु की वजह से किडनी की बीमारी का खतरा हो सकता है। किडनी
की बीमारी को जानने के लिए हर साल जांच करवाना महत्वपूर्ण है।
किडनी रोग के संकेत –
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शरीर में खून की कमी (एनीमिया)
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भूख कम लगना
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यूरिन में रक्त आना
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यूरिन की मात्रा में कमी होना
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यूरिन का रंग गहरा होना
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थकान होना
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उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)
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एडिमा सूजे हुए पैर, हाथ और टखना (गंभीर स्थिति में चेहरे
पर सूजन आना)
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स्किन में लगातार खुजली होना
·
अधिक पेशाब आना
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मांसपेशियों में ऐंठन और झनझनाहट होना
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जी मिचलाना
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अचनाक सिरदर्द होना या चक्कर आना
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शरीर का वजन अचानक घटना या बढ़ना
किडनी रोग होने पर रक्त में क्रिएटिनिन के स्तर का पता लगाने के लिए
साधारण सी जांच की जाती है। इससे किडनी की कार्यक्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता
है। साथ ही पेशाब और स्क्रीनिंग के द्वारा भी किडनी रोग की जांच की जा सकती है।
यूरिन में क्रिएटिनिन और एलब्यूमिन की लिए जांच की जाती है और जो लोग किडनी रोगों
के उच्चतम जोखिम पर है, उन्हें
जांच जरूर करवाना चाहिए।
किडनी की बीमारी से बचने के लिए करें
परहेज -
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ज्यादा नमक न खाएं -
नमक के अंदर बहुत सारा सोडियम होता है और जब हम खाने में जरूरत से ज्यादा नमक
डालते हैं, तो
इसे बॉडी से बाहर निकालने में किडनी को काफी मुश्किले पैदा होती है और इससे किडनी
पर अधिक प्रेशर पड़ता है।
·
अधिक कैफीन लेना -
जरूरत से अधिक कॉफी और दूसरे कैफीन वाले ड्रिंक्स पीने से किडनी डैमेज हो सकती हैं, क्योंकि अधिक कैफीन से ब्लड प्रेशर
बढ़ता है।
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ज्यादा पेनकिलर्स खाना -
अगर आप लंबे समय से पेनकिलर्स खा रहे हैं, तो इससे किडनी के फंक्शन पर असर होता है। शरीर में खून की कमी भी हो
सकती है।
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अधिक प्रोटीन का सेवन करना - इस
बात में कोई दो राय नहीं है कि प्रोटीन सेहत के लिए बेहद अच्छा है, लेकिन जरूरत से ज्यादा प्रोटीन खाने से
भी किडनी पर बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि
किडनी हमारे शरीर का बेहद नाजुक अंग है। ऐसे में अधिक प्रोटीन के चलते, यह डैमेज भी हो सकती है। प्रोटीन से
भरपूर फूड्स खाने से डाइजेस्टिव सिस्टम पर लोड बढ़ता है, इसीलिए किडनी के सही फंक्शन के लिए और इन्हें हेल्दी रखने के लिए
सीमित मात्रा में ही प्रोटीन लेना चाहिए।
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ज्यादा अल्कोहल पीना -
अगर आप बहुत ज्यादा शराब पीते हैं, तो
अपनी इस बुरी आदत पर लगाम लगा लें। अल्कोहल किडनी को पूरी तरह से डैमेज कर सकती है, क्योंकि इसमें अधिक मात्रा में
टॉक्सिन्स होते हैं।
किडनी रोगियों के लिए फायदेमंद है
आयुर्वेदिक उपचार
सब जगह सबसे अधिक मान्यता एलोपैथी उपचार पद्धति को मिली हुई है, लेकिन आयुर्वेदिक उपचार एक प्राचीन
पद्धति है, जिसका
शब्दिक अर्थ है जीवन का विज्ञान है। मनुष्य के समग्रतावादी ज्ञान पर अधारित है। यह
पद्धति मानवीय शरीर के उपचार तक ही सीमित रखने की बजाय, शरीर, तन-मन
और आत्मा के बीच संतुलन बनाकर स्वास्य्वि
में सुधार करता है। इस पद्धति की एक और उल्लेखनीय विशिष्टिता है। यह औषधीय
गुण रखने वाली वनस्पतियों व जड़ी-बूटियों के जरीए बीमारियों का इलाज करती है।
आयुर्वेद में निदान व उपचार से पहले मनुष्य के व्यक्तित्व की श्रेणी पर अधिक ध्यान
दिया जाता है। आयुर्वेद में मुताबित,
मानव शरीर चार मूल तत्वों से निर्मित है - दोष, धातू, मल और अग्नि। आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक
महत्व है। इन्हें ‘मूल
सिद्धांत’ या
आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत कहा जाता है।
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