क्रोनिक किडनी डिजीज के कितने चरण है?


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किडनी शरीर का अभिन्न अंग है इस बात से सभी अवगत है। इसका कार्य बहुत ही जटिल होता है जिसकी तुलना हम किसी बड़ी मशीन या कंप्यूटर से कर सकते हैं। जिस तरह किडनी बहुत से कार्य करती है ठीक उसी प्रकार किडनी खराब भी कई चरणों में होती है। किडनी अंदरूनी रूप से कभी भी अचानक से खराब नहीं होती। किसी दुर्घटना के चलते किडनी एक दम जरूर खराब हो सकती है, जिसमे किसी दुर्घटना या किसी दवा से हुआ संक्रमण आदि शामिल है। आमतौर पर किडनी खराब होने में एक लम्बा समय लगता है, जब तक रोगी को इस बारे में पता चलता है जब तक रोगी को किडनी तकरीबन 60 से 65 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है।
किडनी खराब होने में महीनों से सालों का समय लगता है। किडनी खराब होने की क्रिया को पाँच चरणों में बांटा जा सकता है। किडनी फेल्योर के हर चरण में किडनी की स्थिति अलग होती है और हर दुसरे चरण में किडनी पहले की मुकाबले और खराब होती जाती है, जिसके चलते किडनी को बचाना और भी मुश्किल हो जाता है। किडनी खराब होने के पाँचों चरणों को किडनी की कार्यक्षमता की दर या GFR स्तर के आधार पर विभाजित किया जाता है। किडनी की कार्यक्षमता दर और GFR का अनुमान रक्त में मौजूद क्रिएटिनिन की मात्रा की जांच से किया जाता है। आपको बता दें कि एक स्वस्थ किडनी का GFR 90ml/min से ज्यादा या लगभग होता है।
इन पांच चरणों में होती है किडनी खराब:-
किसी भी व्यक्ति की किडनी विफल होने में महीनों से लेकर सालों तक का समय लगाती है। किडनी विफल होने की इस पूरी क्रिया को पांच चरणों में विभाजित किया जा सकता है। किडनी खराब होने के पाँचों चरणों को किडनी की कार्यक्षमता की दर या GFR  स्तर के आधार पर विभाजित किया जाता है। किडनी की कार्यक्षमता दर या  GFR  का अनुमान रक्त में मौजूद क्रीएटिनिन की मात्रा की जांच से किया जाता है। आपको बता दें की एक स्वस्थ किडनी का GFR  90ml/min से ज्यादा या उसके लगभग हो सकता है। किडनी खराब होने के पांच चरण निम्नलिखित है -
पहला चरण
किडनी खराब होने के पहले चरण में किडनी की खराबी के कोई खास लक्षण नहीं दिखाई देते। इस दौरान किडनी की कार्यक्षमता या GFR  90 100 % तक होती है। अगर GFR  की ठीक से बात करे तो यह 90ml/min तक होता है। पहले चरण में रोगी को किडनी फेल्योर का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन पेशाब से संबंधित कोई विकार जरुर हो सकता है। जिसमे पेशाब में गंध आना, रंग में परिवर्तन या फिर पेशाब में प्रोटीन आ सकता है। अगर आप ऐसी समस्या से जूझ रहे है तो आप सी। टी। स्कैन या सोनोग्राफी, एक्सरे और एम. आर. आई. जैसी जांचों से किडनी के हालात को जान सकते है। इस जांच से क्रोनिक किडनी डिजीज के बारे में पता लगाया जा सकता है।
दूसरा चरण
पहले चरण की तरह दुसरे चरण में भी क्रोनिक किडनी डिजीज के कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। इस चरण में रोगी को पेशाब से जुड़ी समस्याएं और अधिक उत्पन्न हो सकती है। दुसरे चरण में रोगी को देर रात बार-बार पेशाब आता है, साथ ही पेशाब में गंध आना, रंग में परिवर्तन और पेशाब में प्रोटीन भी आने की शिकायत हो सकती है। इस चरण में रोगी का GFR  60 से 89 मि.लि./मिनिट तक हो सकता है। पेशाब की जांच में कुछ मूत्र विकार और रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की कुछ मात्रा बढ़ी हुई आ सकती है। क्रोनिक किडनी डिजीज में रोगी के खून में बहुत ज्यादा दबाव बढ़ सकता है, जिससे उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है।
तीसरा चरण
क्रोनिक किडनी डिजीज का तीसरा चरण बहुत ही जटिल माना है, तीसरे चरण में किडनी खराब होने के कुछ लक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देने लग जाते हैं। यह लक्षण आते जाते रहते हैं  जिसके कारण लोग अक्सर इन लक्षणों के ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं देते। कम जानकारी के कारण तीसरा चरण आगे बढ़ जाता है। लेकिन सही समय पर उपचार लेकर इसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। तीसरे चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 30 तो 59 मि.लि./मिनिट के लगभग हो सकता है। लक्षणों की बात करे तो तीसरे चरण में मूत्र विकार के साथ कमर में दर्द, पेट से जुड़ी समस्याएँ आ सकती है। रात को बार-बार पेशाब आने की समस्या हर किसी रोगी के अंदर नहीं दिखाई देती।
चौथा चरण
चौथे चरण में किडनी की कार्यक्षमता अथवा GFR  15-29 मि.लि./मिनिट तक हो जाती है कई केसों में इससे भी गंभीर हालत भी देखि जाती है। इस चरण तक आते-आते किडनी फेल्योर के कुछ लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाते हैं। इस चरण तक रोगी को इस बारे में समझ आ चूका होता है कि शरीर में कोई न कोई दिक्कत आ चुकी है। इस दौरान रोगी के शरीर में दर्द के साथ सूजन, कमर में दर्द, उल्टियाँ आना, अपच, जी मचलना, पेशाब से जुड़ी समस्याएं, भूख की कमी, कमजोरी, खुजली और पेट में कोई समस्या भी पैदा हो सकती है। अगर इन लक्षणों पर ध्यान ना दिया जाए तो रोगी हालत और खराब हो सकती है। चौथे चरण में रोगी को दवाओं की मदद से ठीक किया जा सकता है।
पांचवा चरण
किडनी फेल्योर का अंतिम चरण यानि पांचवा चरण रोगी के लिए बहुत कष्टदायक होता है। इस चरण में किडनी ख़राब होने के लक्षण उभर कर दिखाई देने लगते है। लक्षणों को कम करने में दवाओं का भी कोई खासा असर दिखाई नहीं देता। रोगी का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है जिसके कारण वह चलने के लायक तक नहीं रहता, उसे हर काम के लिए किसी अन्य की सहायता लेनी पड़ती है। अंतिम चरण में रोगी की GFR  अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15 % से भी कम हो जाती है। इस अवस्था में रोगी को डायलिसिस की परिक्रिया से जूझना पड़ता है। इसके अलावा रोगी की हालत को देखते हुए उसकी किडनी ट्रांसप्लांट तक करनी पड़ सकती है।
अंतिम चरण में क्या होता है?
अंतिम चरण में रोगी को डायलिसिस जैसी जटिल प्रक्रिया से भी जूझना पड़ता है। इसके अलावा रोगी की हालत को देखते हुए उसकी किडनी ट्रांसप्लांट तक करनी पड़ सकती है। इस चरण में रोगों को डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट से भी गुजरना पड़ता है। रोगी का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है जिसके कारण वह चलने-फिरने में समर्थ नहीं होता,  उसे हर काम के लिए किसी अन्य की सहायता लेनी पड़ती है।
अन्तिम चरण में रोगी के पेट में दर्द, आँखों और पैरो में सूजन, कमर के निचले हिस्से में दर्द, गठिया, कम पेशाब आना, उल्टियाँ आना, खाना ना पचना भूख में कमी, गैस और पेट में सूजन, खून मे कमी, सांस फूलना या छोटे- छोटे सांस आना, नींद की कमी, रात में बार बार पेशाब आना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस चरण में रोगी का क्रीएटिनिन स्तर लगातार बढ़ता रहता है। अगर रोगी के रक्त में क्रीएटिनिन का स्तर कम नहीं किया जाए तो रोगी को जान से हाथ तक धोना पड़ सकता है।

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