कोई भी चीज़ अपने आप कभी खराब नही होती ठीक उसी प्रकार किडनी भी कभी अपने आप खराब नहीं होती। किडनी खराब होने के पीछे हमेशा कोई न कोई कारण होता है। कुछ खास कारणों के चलते किडनी अचानक खराब जरूर हो सकती है, जैसे  अंदरूनी चोट, किसी दवा का नकारात्मक प्रभाव सीधा किडनी पर पड़ने से आदि। किडनी खराब होने के वैसे तो कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इसके पीछे कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित है
उच्च रक्तचाप की समस्या - यदि कोई ब्यक्ति लम्बे समय से उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहा है तो उसके किडनी खराब होने की समस्या हो सकती है। रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, जिसके कारण किडनी के नेफ्रोन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब होना शुरू हो जाती है।
मधुमेह की समस्या - ए क बार मधुमेह होने के बाद व्यक्ति को पूरी उम्र इस समस्या के साथ जीना पड़ता है। मधुमेह होने पर व्यक्ति का शरीर बीमारियों का घर बन जाता, जिसमे किडनी की बीमारी सबसे खतरनाक है। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक हो जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करने पर किडनी के नेफ्रोन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और यही स्थिति रहने पर किडनी भी खराब हो जाती है।
मूत्र विकार - पेशाब से जुड़ी सभी समस्याएं सीधे किडनी से जुड़ी हुई हैं। पेशाब कम आना या पेशाब ज्यादा आना दोनों किडनी में समस्या की तरह इशारा करते हैं। इसके आलावा पेशाब का रंग बदला, जलन होना, गंध आना यह सभी मूत्र संक्रमण की इशारा करते हैं। सही समय पर उचाप ना मिलने पर इस बीमारी के कारण किडनी खराब हो जाती है।
आयुर्वेद द्वारा खराब किडनी को करे पुनः स्वस्थ :-
किडनी खराब होने पर उसे पहले की तरह ठीक करना बहुत ही मुश्किल काम होता है। आयुर्वेद की सहायता से खराब किडनी को फिर से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेद किसी चमत्कार से कम नहीं है जो काम एलोपैथी उपचार नहीं कर सकता उसे आयुर्वेद बड़ी आसानी से करने की ताक़त रखता है।  आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप पर उत्पन्न हुई एक प्राचीन चिकत्सा प्रणाली है। बाकि चिकित्सा प्रणालियों के विपरीत, आयुर्वेद रोगों के उपचार की बजाय एक स्वस्थ जीवनशैली की तरह ज्यादा ध्यान केन्द्रित करता है। किडनी खराब होने पर निम्न वर्णित औषधियों का प्रयोग किया जाता है :-
गोखरू - किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है। गोखरू की तासीर बहुत गर्म होती है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों में करने की सलाह दी जाती है। गोखरू क्रिएटिएन कम करने, यूरिया स्तर सुधारने में, सूजन दूर करने में, मूत्र विकार दूर करने में, किडनी से पथरी निकलने में सहायता करता है। गोखरू के पत्ते, फल और इसका तना तीनों रूपो में उपयोग किया जाता है, इसके फल पर कांटे लगे होते हैं। किडनी के लिए गोखरू किसी वरदान से कम नहीं है।
गिलोय - गिलोय की बेल की तुलना अमृत से की जाए तो गलत नहीं होगा। इस बेल के हर कण में औषधीय तत्व मौजूद है। यह किडनी की सफाई करने में भी काफी लाभदायक मानी जाती है। यह स्वाद में कड़वी लेकिन त्रिदोषनाशक होती है। इस बेल के तने, पत्ते और जड़ का रस निकालकर या सत्व निकालकर प्रयोग किया जाता है। इसका खास प्रयोग गठिया, वातरक्त (गाउट), प्रमेह, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तेज़ बुखार, रक्त विकार, मूत्र विकार, डेंगू, मलेरिया जैसे गंभीर रोगों के उपचार में किया जाता है।
पुनर्नवा – पुनर्नवा जड़ी-बूटी का नाम दो शब्दों के मेल से बना है - पुना और नवा से प्राप्त किया गया है। पुना का मतलब फिर से नवा का मतलब नया और एक साथ वह अंग का नवीकरण कार्य करने में सहायता करते हैं जो उनका इलाज करते हैं। यह जड़ीबूटी किसी भी साइड इफेक्ट के बिना सूजन को कम करके गुर्दे में अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ्लश करने में मदद करती है। यह जड़ीबूटी मूल रूप से एक प्रकार का हॉगवीड है।
किडनी के लिए आयुर्वेदिक उपचार कहा से लें?
आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। आयुर्वेद में इस रोग को हमेशा के लिए खत्म करने की ताक़त मौजूद है। जबकि अंग्रेजी दवाओं में बीमारी से कुछ समय के लिए राहत भर ही मिलती है। आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर जैसी जानलेवा बीमारी से निदान पाया जा सकता है। आज के समय में "कर्मा आयुर्वेदा" प्राचीन आयुर्वेद के जरिए "किडनी फेल्योर" जैसी गंभीर बीमारी का सफल इलाज कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी।