किडनी के अन्य रोगों के मुकाबले क्रोनिक किडनी डिजीज (किडनी फेल्योर) एक गंभीर समय है। इस बीमारी से बच पाना बहुत ही मुश्किल होता है। क्योंकि व्यक्ति को जब तक इस बीमारी के बारे में जानकरी मिलती है उस समय तक काफी देर हो चूकी होती है। क्रोनिक किडनी डिजीज यानि सी. के. डी. में व्यक्ति की किडनी खराब होने में एक लम्बा समय लगता है। इसमें महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है, शायद इसी कारण इस बीमारी को साइलेंट किलर के नाम से पुकारा जाता है। यह एक किस्म का किडनी रोग है जो बहुत धीमी गति से व्यक्ति को अपनी जकड में ल्रता है इसमें सालों तक समय भी लघता है। जब शरीर में सीरम क्रीएटिनिन का स्तर लगातार धीमी गति के साथ बढ़ता रहे और ऐसा होने के कारण किडनी की कार्यक्षमता कम होने लगे इस स्थिति को सी. के. डी. कहा जाता है। इस रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियां खराब हो जाती है। किडनी खराब होते समय इसके कुछ लक्षण हमारे शरीर में जरुर दिखाई देते हैं।
आखिर किडनी खराब क्यों होती है?
किडनी कभी भी अपने आप
खराब नहीं होती। किडनी कुछ कारणों के चलते खराब होती है। किडनी खराब होने के खास
कारण निम्नलिखित हैं –
उच्च रक्तचाप – हमेशा उच्च रक्तचाप रहने के कारण से भी किडनी खराब हो सकती
है। उच्च रक्तचाप के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में समस्या होती है, साथ ही अधिक क्षार युक्त रक्त को बार बार शुद्ध करने के कारण किडनी पर इसका
नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है।
कम पानी पीना – जो लोग बहुत कम पानी पीते है उनकी किडनी खराब होने के आसार
अधिक होते है। पानी पीने से किडनी की सफाई होती रहती है, जिससे पेशाब की मात्रा मे कामी नहीं आती। किडनी पेशाब के जरीये शरीर के
अपशिष्ट उत्पादों को बहार निकाल देता है। अगर कोई व्यक्ति कम पानी पीता है तो उसके
शरीर में बनने वाले अपशिष्ट उत्पाद शरीर से बाहर ना जाकर रक्त में जमा होने लगेंगे
और देखते ही देखते किडनी खराब हो जाएगी।
एंटीबायोटिक्स का
अधिक सेवन - अगर आप
एंटीबायोटिक दवाओं या अन्य किसी प्रकार की दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, तो यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपकी किडनी के कार्य को नुकसान पहुंचाता
है, जिसके कारण किडनी खराब हो सकती है। किडनी को नुकसान
पहुंचाने वाली दवाओं को नेफ्रोटॉक्सिक (Nephrotoxic) दवाओं के नाम से
जाना जाता है।
मूत्र संक्रमण – मूत्र संक्रमण के कारण से भी किडनी खराब हो सकती है। क्योंकि
पेशाब शरीर से बाहर जाने में समर्थ नहीं होता। जिससे किडनी की सफाई नहीं हो पति और
शरीर में यूरिया, क्रीएटिनिन जैसे विषाक्त तत्व बढ़ने लगते और
किडनी खरब हो जाती है।
मधुमेह – एक बार मधुमेह होने के बाद इससे बच पाना मुश्किल होता है।
मधुमेह के कारण हमारे शरीर में और भी कई प्रकार की बीमारियां होना शुरू हो जाती
है। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करते समय किडनी पर दबाव पड़ता है। किडनी पर लगातार
दबाव पड़ने के कारण किडनी खराब हो जाती है।
क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण :-
क्रोनिक किडनी डिजीज के
सभी चरणों और कारणों के बारे में आपने ऊपर विस्तार से जाना। अब जानते है किडनी
खराब होने के दौरान शरीर में दिखाई देने वाले लक्षणों में। किडनी खराब होने के
दौरान रोगी को शरीर में निम्नलिखित बदलाव या लक्षण दिखाई देते है। जो हर चरण के साथ
बढ़ते जाते है। इन लक्षणों की पहचान कर आप आसानी से इस रोग से बच सकते है।
·
शरीर में सूजन
·
थकावट और कमजोरी
महसूस होना
·
गर्मी में भी ठंड
लगना
·
मुंह से बदबू आना
·
मुंह का स्वाद
खराब होना
·
सांस लेने में
परेशानी
·
ब्लड प्रेशर का
बढ़ना
किडनी फेल्योर का आयुर्वेद उपचार :-
एलोपैथी उपचार के मुकाबले
आयुर्वेदिक उपचार से किसी भी प्रकार के रोग को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है,
बशर्ते कि रोगी औषधियों के साथ-साथ परहेज का
सही से पालन करें। आयुर्वेदिक औषधियों भले ही रोग को खत्म करने में समय लगाए लेकिन
वह रोग को जड़ से खत्म करता है, साथ ही उसके
भविष्य में होने की संभावनाओं को भी नष्ट करता है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा विफल
हुई किडनी को स्वस्थ करते समय डायलिसिस जैसे जटिल उपचार का सहारा नहीं लिया जाता।
डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम क्रिया है, इसे एलोपैथी उपचार के दौरान प्रयोग किया जाता है। जबकि
आयुर्वेदिक उपचार में कुछ खास जडी-बुटीयों का प्रयोग कर किडनी को स्वस्थ किया जाता
है।
किडनी की बीमारी से जीने
की आस छोड़ चुके उन सभी रोगियों को कर्मा आयुर्वेदा ने जीने की नयी आस प्रदान की है
जो जीने की आस एक दम छोड़ चुके थे। कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की
मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेद की स्थापना 1937 में
धवन परिवार द्वारा की गयी थी। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं।
कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही किडनी रोगी के रोग का निवारण किया
जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त करता
आ रहा है।
आपको बता दें कि कर्मा
आयुर्वेदा में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के बिना ही विफल हुई किडनी का सफल इलाज
किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा पीड़ित को बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांस्पलेंट के
ही पुनः स्वस्थ करता है। कर्मा आयुर्वेद बीते कई वर्षो से इस क्षेत्र में किडनी
पीड़ितों की मदद कर रहा है। डॉ. पुनीत धवन ने
केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों
का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने 35
हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या
किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।
किडनी फेल्योर
जैसी गंभीर समस्या के आयुर्वेदिक उपचार में कुछ निम्नलिखित औषधियों का इस्तेमाल
किया जाता है –
गोखरू - किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे उत्तम
आयुर्वेदिक औषधि है। गोखरू की तासीर बहुत गर्म होती है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों में करने की सलाह दी जाती है। गोखरू के पत्ते, फल और इसका तना तीनों रूपो में उपयोग किया जाता है, इसके फल पर कांटे लगे होते हैं। किडनी के लिए गोखरू किसी वरदान से कम नहीं है।
गोखरू कई तरीकों से किडनी को स्वस्थ बनाएं रखती है। गोखरू क्रिएटिएन कम करने, यूरिया स्तर सुधारने में, सूजन दूर करने में, मूत्र विकार दूर करने में, किडनी से पथरी निकलने में सहायता करता है।
गिलोय – गिलोय की बेल की तुलना अमृत से की जाए तो गलत
नहीं होगा। इस बेल के हर कण में औषधीय तत्व मौजूद है। इस बेल के तने, पत्ते और जड़ का रस निकालकर या सत्व निकालकर प्रयोग किया जाता है। इसका खास
प्रयोग गठिया, वातरक्त (गाउट), प्रमेह, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तेज़ बुखार, रक्त विकार, मूत्र विकार, डेंगू, मलेरिया जैसे गंभीर रोगों के उपचार में किया जाता है। किसी कारण रक्त के अधिक
बह जाने या रक्त का स्तर अचानक गिर जाने पर गिलोय का खास प्रयोग किया जाता है। यह
किडनी की सफाई करने में भी काफी लाभदायक मानी जाती है। यह स्वाद में कड़वी लेकिन
त्रिदोषनाशक होती है।
पुनर्नवा – इस जड़ी बूटी का नाम दो शब्दों - पुना और नवा से
प्राप्त किया गया है। पुना का मतलब फिर से नवा का मतलब नया और एक साथ वे अंग का
नवीकरण कार्य करने में सहायता करते हैं जो उनका इलाज करते हैं। यह जड़ीबूटी किसी
भी साइड इफेक्ट के बिना सूजन को कम करके गुर्दे में अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ्लश
करने में मदद करती है। यह जड़ीबूटी मूल रूप से एक प्रकार का हॉगवीड है।
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