किडनी के सिकुड़ने से सीधा अर्थ है किडनी के आकार में नकारात्मक परिवर्तन यानि किडनी पहले के मुकाबले छोटी होना। किडनी की यह स्थिति नेफ्रोन के दब जाने के कारण होती है। किडनी के आकार में आय परिवर्तन के चलते किडनी अपने कार्यों को करने में असमर्थ हो जाती है। किडनी की यह स्थिति किडनी फेल्योर के ही सामान होती है, ऐसे में किडनी , शरीर के विषैले पदार्थों को छानकर बाहर निकालने में सक्षम नहीं होती। जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति के रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ने लगती और उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  
किडनी के आकार में नकारात्मक परिवर्तन क्यों आता है?
किडनी सिकुड़ने के पीछे कुछ खास कारण माने जाते हैं जिनके चलते हमारी किडनी आकार में छोटी होती चली जाती है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उच्च रक्तचाप को माना जाता है, इसके अलावा किडनी छोटी होने के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं :-
किडनी की घमनियों का ब्लोक होना (Blocked renal artery) :
किडनी की घमनियों का मुख्य कार्य होता है किडनी के अंदर रक्त का संचार करना। जब धमनियां फैटी एसिड या रक्त के थक्कों के संचय के साथ कठोर हो जाती हैं,  तो किडनी के आकार में बदलाव आने लगता है। किडनी में दो प्रकार की रक्त धमनियां होती है, एक रक्त वाहिका (BLOOD VESSEL) और दूसरा नस (VEIN)। रक्त वाहिका (BLOOD VESSEL) किडनी में ऑक्सीजन युक्त रक्त भेजने का कार्य करती है। जिसे किडनी के नेफ्रोन यानि किडनी फिल्टर्स साफ कर उसके अंदर से अपशिष्ट उत्पाद, क्षार और अम्ल को बाहर निकाल कर पेशाब के रूप में शरीर से बाहर निकाल देते हैं। रक्त से अपशिष्ट उत्पाद बाहर निकलने के बाद नसें (VEIN) उसे किडनी से बाहर निकाल कर पूरे शरीर में शुद्ध रक्त प्रवाह करती है।
मूत्र पथ में अवरोध होने पर  :
मूत्र पथ में आई किसी खामी का सीधा असर किडनी पर नकारात्मक असर पड़ता है। इससे किडनी पर दबाव पड़ना शुरू हो जाता है जिसके चलते किडनी के नेफ्रोन को नुकसान पहुँचता है।
किडनी में पथरी होना :
किडनी में पथरी होने पर किडनी के कार्य में बड़ी रूकावट पैदा होने लगती है। जिसके चलते किडनी में रक्त ठीक से नहीं जा पाता जिससे किडनी की कार्यक्षमता पर असर पड़ने लगता है और किडनी का आसकर छोटा होने लगता है।
किडनी में संक्रमण होना :
किडनी में या किडनी से जुड़े किसी अंग में संक्रमण होने पर किडनी प्रभावित होती है जिसके चलते किडनी का आकर छोटा होता जाता है। जैसे - पाइलोनफ्राइटिस से किडनी का आकार प्रभावित होता है।
किडनी की सिकुड़न का आयुर्वेदिक उपचार :-
आयुर्वेद में किडनी की सिकुड़न का उपचार मौजूद हैं। अगर आप किडनी की इस समस्या से जूझ रहे हैं तो आप निम्नलिखित औषधियों का उपयोग कर सकते हैं :-
मकोय :-
किडनी की सिकुड़न को ठीक करने के में मकोयबहुत ही लाभकारी है। इस फल का वैज्ञानिक नाम “Solanum Americanum Mill” है और इसे अंग्रेजी में “Common nightshade” कहते हैं। जिन लोगों के किडनी में सिकुड़न हो, उनको इस फल का पूरा पौधा लेकर उसके फल को तोड़ लेना चाहिए। फल को अच्छी तरह से धोकर फल के सारे रस को निकालकर रख लेना चाहिए। आप चाहे तो हर रोज यही प्रक्रिया कर सकते हैं। हर रोज 20 ml, दिन में दो बार इसका सेवन करें। यह काम लगातार 3 महीने तक करते रहें आपकी किडनी की सिकुड़न सही हो जायगी होगी। आपको बता दें इस फल का अर्क भी बाजार में मिलता है।
गिलोय :-
गिलोय की बेल की तुलना अमृत से की जाए तो गलत नहीं होगा। इस बेल के हर कण में औषधीय तत्व मौजूद है। इस बेल के तने, पत्ते और जड़ का रस निकालकर या सत्व निकालकर प्रयोग किया जाता है। इसका खास प्रयोग गठिया, वातरक्त (गाउट), प्रमेह, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तेज़ बुखार, रक्त विकार, मूत्र विकार, डेंगू, मलेरिया जैसे गंभीर रोगों के उपचार में किया जाता है। किसी कारण रक्त के अधिक बह जाने या रक्त का स्तर अचानक गिर जाने पर गिलोय का खास प्रयोग किया जाता है। यह किडनी की सफाई करने में भी काफी लाभदायक मानी जाती है। यह स्वाद में कड़वी लेकिन त्रिदोषनाशक होती है।
अश्वगंधा :-
अश्वगंधा आयुर्वेदिक औषधियों में एक खास औषधि है, इसका प्रयोग कई रोगों के उपचार में किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर इसे प्रयोग में लाया जाता है। इस चूर्ण को उबालकर इसके सत्व का प्रयोग किया जाता है या फिर आप इसका प्रयोग गर्म पानी के साथ भी कर सकते हैं। अश्वगंधा का चूर्ण रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मूत्र विकार जैसे गंभीर रोगों से उचार दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा यह बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है।