कैसी होती है किडनी की आंतरिक संरचना?




Image result for kidneyकैसी होती है किडनी की आंतरिक संरचना?
वृक्क यानि की किडनी हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। किडनी मानव शरीर का सबसे संवेदनशील अंग है, यह मानव शरीर के शारीरिक और मानसिक विकास में अहम भूमिका अदा करती हैं। किडनी में जरा-सी भी खराबी आने से व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। किडनी की विफलता मौत का कारण भी बन सकती है। किडनी हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कई जटिल और महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम देती हैं, इसलिए आप इसकी तुलना कंप्यूटर से कर सकते हैं।
किडनी की संरचना :-
किडनी वैसे तो बहुत से कार्यों को करती है, लेकिन किडनी का सबसे महत्वूर्ण कार्य है रक्त शोधन कर पेशाब बनाना। किडनी द्वारा बनाएं गये पेशाब को शरीर से बाहर निकालने का कार्य मूत्रवाहिनी, मूत्राशय, और मूत्रनलिका का होता है। किडनी हमारे पेट के अंदर पीछे के हिस्से में पीठ के दोनों तरफ पसलियों में सुरक्षित तरीके स्थित होती है। किडनी, पेट के भीतरी भाग में स्थित होती हैं जिसकी वजह से बाहर से स्पर्श करने पर महसूस नहीं होती। किडनी आकार में राजमा की भांति दिखाई देती हैं। वयस्कों में एक किडनी लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी, 6 सेंटीमीटर चौड़ी और 4 सेंटीमीटर मोटी होती हैं। मानव शरीर की प्रत्येक किडनी का वजन लगभग 150 - 170 ग्राम होता है। दोनों किडनियों में बाएं किडनी की तुलना में दाहिनी किडनी आकार में छोटी एवं अधिक फैली हुई होती है अर्थात मोटी होती है। दाहिनी किडनी कुछ नीचे की ओर एवं बाई किडनी की तरफ फैली हुई होती है।  
किडनी की आंतरिक संरचना :-
किडनी की आंतरिक संरचना बहुत जटिल होती हैं, जिसे समझना बहुत कठिन होता है। किडनी की आंतरिक संरचना को तीन भागों में बाटा गया हैं, जो निम्नलिखित हैं –
1.       किडनी श्रोणी (RENAL PELVIS)
2.       किडनी मज्जा (RENAL MEDULLA)
3.       किडनी छाल (RENAL CORTEX)

1.       किडनी श्रोणी (RENAL PELVIS)
किडनी श्रोणी, किडनी का सबसे आंतरिक भाग होता है। किडनी के इसी भाग से मूत्रनली बाहर की ओर निकलती है। इस स्थान पर एक संचय स्थान होता है।

2.       किडनी मज्जा (RENAL MEDULLA)
किडनी का यह भाग मध्यभाग होता है, जिसे किडनी मज्जा कहा जाता है। किडनी के इस भाग में 8 से 18 तक की संख्या में किडनी के पिरामिड्स पाए जाते हैं। यह सभी पिरामिड्स शंकु के आकार के होते हैं। यह सभी पिरामिड्स किडनी श्रोणी में आकर खुलते हैं। इन सभी पिरामिड्स में स्थित नलिकाएं मूत्र के पुनः अवशोषण की क्रिया में मदद करती हैं।

3.       किडनी छाल (RENAL CORTEX)
यह किडनी का सबसे बाहरी भाग होता है। किडनी का यह भाग किडनी सम्पुट (capsule) से जुड़ा हुआ होता है। किडनी सम्पुट किडनी का बाहरी आवरण होता है। किडनी के इस भाग में नलिकाएं गुच्छों के रुप में अथवा जाल के रुप में फैली होती हैं।

किडनी खराब होने के कारण :-
आपने ऊपर किडनी की आंतरिक संरचना के बारे में विस्तार से जाना। किडनी का मुख्य कार्य रक्त शोधन करना होता है। लेकिन किडनी खराब होने के कारण किडनी अपने इस महत्वपूर्ण कार्य को करने में समर्थ नहीं होती। किडनी खराब होने के मुख्य रूप से तीन कारण होते हैं जो निम्नलिखित है –
मधुमेह
जो व्यक्ति मधुमेह की बीमारी से जूझ रहे हैं, उन्हें किडनी की विफलता की समस्या हो सकती हैं। मधुमेह में रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे किडनी को रक्त शोधन करने में बाधा होती हैं। रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ने से किडनी के फिल्टर्स खराब होने लगते हैं। फिल्टर्स खराब होने के कारण किडनी प्रोटीन को रक्त में प्रवाह नहीं कर पाती, साथ ही अपशिष्ट उत्पादों को भी पेशाब के जरिये शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती। फलस्वरूप किडनी खराब हो जाती है।
उच्च रक्तचाप
रक्त में सोडियम की अधिक मात्रा होने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा होती है। लगातार उच्च रक्तचाप होने के कारण किडनी पर दबाव बढ़ने लगता है जिससे किडनी को कार्य करने में समस्या होती है साथ ही उसके फिल्टर्स पर भी असर पड़ता हैं। किडनी पर दबाव बढ़ने के चलते वह अपने कार्य को करने में असमर्थ हो जाती हैं। इस स्थिति में किडनी द्वारा रक्त में प्रोटीन, क्षार और अन्य रसायनों का संतुलन नहीं बना पाता है। रक्त में क्षार और प्रोटीन की अधिक मात्रा होने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या होने लगती है। उच्च रक्तचाप होने के कारण किडनी पर दबाव बढ़ने लगता है, साथ ही अन्य समस्याओं के चलते किडनी खराब हो जाती है।
किडनी की बीमारी का पारिवारिक इतिहास
जिस परिवार में किसी व्यक्ति को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग रहा हो, तो भविष्य में उसकी संतान को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग होने का खतरा रहता है। इसके अलावा उन्हें कोई अन्य किडनी रोग होने का भी खतरा हो सकता है।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-
आयुर्वेद में एलोपैथी की तरह रसायनों का प्रयोग नहीं होता बल्कि प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। हम आयुर्वेद के जरिये हर बीमारी का इलाज कर सकते है। आज के समय में "कर्मा आयुर्वेदा" प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के जरिए "किडनी फेल्योर" जैसी गंभीर बीमारी का सफल इलाज कर रहा है। आप सभी इस बात से वाकिफ है की आयुर्वेदिक उपचार से बेहतर कोई भी उपचार नहीं है। धवन परिवार द्वारा कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना वर्ष 1937 में की गयी थी। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेदा को संभाल रहे है। आज के समय में आपको अनेक आयुर्वेदिक उपचार केंद्र मिल जाएंगे, लेकिन कर्मा आयुर्वेदा किडनी सम्बंधित रोग को ठीक करने को लेकर रामबाण की तरह साबित हुआ है।
कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त कर रहा है। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। जिससे हमारे शरीर में कोई दुष्प्रभाव नहीं होता हैं। आयुर्वेद हर बीमारी को जड़ से खत्म करता है। आयुर्वेद भले ही अपना असर धीरे-धीरे दिखाए लेकिन यह अंग्रेजी दवाइयों की तरह शरीर पर कोई अन्य प्रभाव नहीं छोड़ता। क्योंकि आयुर्वेदिक दवाओं में कोई कैमिकल नहीं होता, जिसके चलते यह हमारे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं छोड़ता। डॉ. पुनीत धवन ने अब तक आयुर्वेद की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा किडनी रोगियों को इस गंभीर रोग से मुक्त किया है।


Post a Comment

0 Comments