किडनी कितने चरणों में खराब होती है?


किडनी हमारे शरीर का सबसे खास अंग है, यह हमरे शरीर में खून साफ करने का सबसे जरूरी काम करती है. किडनी खून साफ करने के दौरान शरीर में मौजूद सारे अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है, लेकिन कई वजहों के चलते किडनी खराब हो जाती है. किडनी खराब होने में एक लम्बा समय लगता है. लेकिन किसी इसकी विफलता को पांच चरणों में विभाजित किया जा सकता है। किडनी खराब होने के पाँचों चरणों को किडनी की कार्यक्षमता की दर या GFR  स्तर के आधार पर विभाजित किया जाता है। किडनी की कार्यक्षमता दर या GFR  का अनुमान रक्त में मौजूद क्रीएटिनिन की मात्रा की जांच से किया जाता है। आपको बता दें कि एक स्वस्थ किडनी का GFR  90ml/min से ज्यादा या उसके लगभग हो सकता है। किडनी की विफलता के पांच चरण निचे उल्लेखनीय हैं :-
पहला चरण -  
किडनी खराब होने के पहले चरण में किडनी की खराबी के कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। इस चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 90100% तक होती है। अगर GFR की ठीक से बात करे तो यह 90ml/min तक होता है। पहले चरण में रोगी को पेशाब से संबंधित कोई विकार जरूर हो सकता है। जिसमे पेशाब में गंध आना, रंग में परिवर्तन या फिर पेशाब में प्रोटीन आ सकता है। अगर आप ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं तो पेशाब की जांच, सी. टी. स्कैन या सोनोग्राफी, एक्सरे और एम. आर. आई. जैसी जांचों से किडनी के हालात को जान सकते हैं। इस जांच से क्रोनिक किडनी डिजीज के बारे में पता लगाया जा सकता है।
दूसरा चरण -  
जिस प्रकार पहले चरण में किडनी खराब होने का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता ठीक उसी प्रकार दुसरे चरण में भी किडनी की खराबी के कोई खास लक्षण नहीं दिखाई देते। इस चरण रोगी को पेशाब से जुड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है। दुसरे चरण में रोगी को देर रात बार बार पेशाब आता है साथ ही पेशाब में गंध आना, रंग में परिवर्तन और पेशाब में प्रोटीन भी आता रहता है। पेशाब की समस्या के अलावा उच्च रक्तचाप की समस्या भी हो सकती है। पेशाब की जांच में कुछ मूत्र विकार और रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा बढ़ी हुई आ सकती है। दुसरे चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 65 से 59 मि. लि./ मिनिट के लगभग हो सकता है।
तीसरा चरण -
किडनी की विफलता का तीसरा चरण काफी जटिल माना जाता है। इस चरण में रोगी के अंदर किडनी खराब होने के कुछ हल्के लक्षण दिखाई देने लगते हैं जिसमे मूत्र विकार भी शामिल है। अन्य लक्षणों की बात करे तो तीसरे चरण में कमर में दर्द, पेट से जुडी समस्याएँ आ सकती है। रात को बार बार पेशाब आने की समस्या हर किसी रोगी के अंदर नहीं दिखाई देती। तीसरे चरण में किडनी की कार्यक्षमता या GFR 30 से 59 मि. लि./ मिनिट के लगभग हो सकता है। अन्य जांचों के अलावा पेशाब की जाँच से भी किडनी फेल्योर के बारे में जाना जा सकता है।
चौथा चरण -
किडनी फेल्योर का चौथा चरण रोगी को यह स्पष्ट करा देता है कि किडनी में कुछ दिक्कत आ चुकी है। इस चरण में किडनी खराब होने के कुछ लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाते हैं। शरीर में अपशिष्ट उत्पादों का स्तर बढ़ने लगता है, जिसके चलते रोगी के शरीर में दर्द के साथ सूजन का आना-जाना, कमर में दर्द, उल्टियाँ आना, अपच, जी मचलना, पेशाब से जुडी समस्या, भूख की कमी, कमजोरी साथ ही खुजली और पेट में कोई समस्या भी पैदा हो सकती है। चौथे चरण में रोगी की किडनी कि कार्यक्षमता अथवा GFR 15-29 मि. लि./ मिनिट तक हो सकता है।
पांचवा या अंतिम चरण -
अंतिम चरण यानि पांचवा चरण रोगी के लिए बहुत कष्टदायक होता है। इस चरण में किडनी खराब होने के लक्षण उभर कर दिखाई देने लगते हैं। अन्तिम चरण में रोगी के पेट में दर्द, आँखों और पैरो में सूजन, कमर के निचले हिस्से में दर्द, गठिया, कम पेशाब आना, उल्टियाँ आना, खाना ना पचना भूख में कमी, गैस और पेट में सूजन, खून मे कमी, सांस फूलना या छोटे छोटे सांस आना, नींद की कमी, रात में बार बार पेशाब आना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अंतिम चरण में रोगी की GFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15% से भी कम हो जाती है। इस अवस्था में रोगी को डायलिसिस की परिक्रिया से जूझना पड़ता है। इसके अलावा रोगी की हालत को देखते हुए उसकी किडनी ट्रांसप्लांट तक करनी पड़ सकती है। अगर रोगी के रक्त में क्रीएटिनिन का स्तर कम नहीं किया जाए तो रोगी को जान से हाथ तक धोना पड़ सकता है।

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